मानव दर्पण न्यूज :सम्पादक डॉ. अजय कुमार मित्रा
स्वराज अभियान द्वारा संयुक्त रूप से “संविधान दिवस” का किया गया अयोजन
(एम डी न्यूज रिपोर्ट : प्रदीप पाल संवाददाता )
जनपद लखीमपुर खीरी के प्रसाद पुर बाज़ार, लंदन पुर ग्रन्ट, विधान सभा गोला, में दिनांक 26 नवंबर, 2023 (दिन रविवार) को कांग्रेस पार्टी और बहुजन स्वराज अभियान द्वारा संयुक्त रूप से “संविधान दिवस” का अयोजन किया गया
जिसमें में श्री दिनेश कुमार सिंह जी, महासचिव (प्रशासन प्रभारी), कांग्रेस पार्टी, उत्तर प्रदेश इकाई मुख्य अतिथि । प्रोफेसर रतन लाल, दिल्ली विश्वविधालय, प्रोफेसर राजेंद्र चौधरी, लखनऊ विश्वविधालय, प्रोफ़ेसर बी. आर. सिंह बौद्ध, श्री वीरेन्द्र सिंह, बिजनोर, श्री राजकुमार, वकील सर्वोच्च न्यायालय, श्री महेंद्र कुमार मंडल, वकील उच्च न्यायालय विशिष्ठ अतिथि होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह यादव, न्यायाधीश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया
संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को “भारत के संविधान” को अपनाया था और 26 जनवरी, 1950 संविधान लागू हुवा था और इस दिन को भारत में गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाता है।
नागरिकता संशोधन कानून,2003 द्वारा असम, पश्चिम बंगाल और ओडिसा राज्यों में बड़े पैमाने पर अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जन जातियो की नागरिकता छीन ली थी और अपने ही देश में उन्हें शरणार्थी बना दिया गया है। वहीं नागरिकता संशोधन कानून, 2019 धर्म के आधार पर भारत की नागरिकता दिए जानें की बात कही गईं हैं जो कि संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
भारत के नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 15,16 और 19 के अंतर्गत कुछ मौलिक अधिकार मिले हुए है।
नागरिकता संशोधन कानून(CAA), 2019 के द्वारा धर्म के आधार पर नागरिकता दिए जानें कि वकालत करता है जो संविधान की धारा 14, जो प्रत्येक व्यक्ति को समानता का मौलिक अधिकार देता है जब कि 15 जो समता का अधिकार देता है यह कानून इन दोनों धाराओं के विरुद्ध है।
सर्वोच्च न्यायालय में कुल 31 न्यायाधीश में वर्तमान में 27 न्यायाधीश कार्यरत हैं जिसमें मुस्लिम 1, अनुसूचित जाति 1, पिछड़ा वर्ग से कोई नहीं। इसी प्रकार 25 उच्च न्यायालयों में 829 कार्यरत न्यायाधीशों में अनुसूचित जाति के 5, अनुसूचित जनजाति के 3 और पिछड़े वर्ग के मात्र 9 न्यायाधीश है।
केंद्र सरकार के अधीन 76 मंत्रालयों में 23 ऐसे मंत्रायलय है जहां वर्ग ए में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व शून्य है।
जनसंख्या किसकी बढ़ी?
1931 में भारत की कुल आबादी 25,68,59,787 थी। जिसमें पिछड़ा वर्ग की आबादी 68प्रतिशत थी। भारत विभाजन से पहले भारत की जनसंख्या 39 करोड़ से कुछ अधिक थी। विभाजन के बाद केवल 6 करोड़ लोग पाकिस्तान गए। शेष 33 करोड़ लोगों ने भारत को अपनी मातृ भूमि चुना। जिसमें मंडल आयोग के अनुसार पिछड़े वर्गों की जनसंख्या 52 प्रतिशत थी। 2001 की जनगणना में अनुसूचित जाति 15.5 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 7.5 प्रतिशत । और (नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के अनुसार 1999 _2000 में पिछड़े वर्गों की जनसंख्या 35 प्रतिशत थी। इसका तात्पर्य है कि पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के भारी कमी आई है। अगले 5 वर्षो (2000_2005) में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुईं अर्थात पिछड़े वर्गों की आबादी 41 प्रतिशत होती है। एनएसएसओ के सर्वेक्षण को यदि मापदण्ड मान लिया जाय तो अगले 15 वर्षों में इनकी आबादी में 18 प्रतिशत की और वृद्धि हुई। इस हिसाब से पिछड़े वर्गों की आबादी 41+18=59 प्रतिशत बनती है। अतः जातिवार जनगणना ही एक मात्र विकल्प है।
कांग्रेस पार्टी और बहुजन स्वराज अभियान का संकल्प है कि
1. कांग्रेस पार्टी जातीवार जनगणना कराएगी ।
2. महिला आरक्षण में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए क्रमशः 16.6, 8.6 और 52 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित होना चाहिए।
3. पुरानी पेंशन लागू होगी।
4. निजी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया जाएगा।
5. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू कर मुस्लिम समाज का सर्वांगीण विकास किया जाएगा।
6. किसानों को न्युनतम समर्थित मूल्य दिया जाएगा।
प्रोफेसर महेन्द्र प्रताप राना
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
समाज सेवी एवम कांग्रेस पार्टी के सदस्य